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Wednesday, April 14, 2010

विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक है अम्बेडकर का जीवन

डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर ने शिक्षा के माध्यम से न सिर्फ भारतीय भूखंड के इतिहास में मानवीय एकता की नीव रखी, बल्कि उनका विद्यार्थी जीवन आज भी न सिर्फ समस्त भारत बल्कि समस्त विश्व के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक है.

भारतीय समाज में फैली अस्पर्शता की रुढ़िवादी परंपरा के कारण भीम के सामने शिक्षा प्राप्ति में अनेकों कठ्नाईयाँ आती रहीं परन्तु अम्बेडकर की लगन और उनके प्राथमिक स्कूल के शिक्षक और बड़ोदा के महाराजा श्याजी राव गायकवाड़ की अनुक्रिपा से अम्बेडकर ने अपनी शिक्षा पायी.

मेघावी छात्र अंबेडकर को गाँव की पाठशाला में समाज के एक वर्ग के बच्चों के साथ नहीं बैठने दिया जाता था और न ही संस्कृत पढ़ने दी जाती थी. गाँव की पाठशाला में वह कक्षा के बाहर बैठ कर ही पढ़ा करते थे. उन्हें पाठशाला के मटके से पानी पीने से भी वर्जित कर रखा था. पर अम्बेडकर की पढ़ने की लगन और कुशाग्र बुधि से प्रेरित हो कर उनके एक शिक्षक ने उनका नाम अम्बेवाडिकर से बदल कर अपना नाम अम्बेडकर रख दिया जिससे की वह आगे भी पढ़ पाए.

बोम्बे में छोटा घर होने के कारण अम्बेडकर कभी बकरियों के तबेले में पढ़ा करते थे, तो कभी पार्कों में और कभी सड़कों पर लेम्प पोस्टों के नीचे. यहाँ भी अस्पर्श्ता की कुरीति ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उन्हें संस्कृत पढ़ने से वर्जित किया गया जिस कारण उन्होंने पर्शियन पढ़ी. एक बार जब कक्षा में उन्हें ब्लेक बोर्ड पर कुछ हल करने को बुलाया गया तो कक्षा के कुछ बच्चों ने बोर्ड के पीछे रखे अपने टिफिन उठा लिए की कहीं उन पर अम्बेडकर की छाया न पड़ जाए.

स्नातक में बड़ोदा के राजा श्याजी महाराज की सेवा करने के दौरान इस मेघावी छात्र से प्रेरित हो कर महाराजा श्याजी राव ने उन्हें छात्रवृति दे कर कोलंबिया विश्वविधालय, अमेरिका पढने के लिए भेजा. अमेरिका में अम्बेडकर छात्रव्रती से पैसे बचा कर अपने घर भी भेजा करते थे और कॉफ़ी - ब्रेड पर ही अपना जीवन व्यतीत करते थे. यहाँ उन्हें जब भी समय मिलता वह पुस्तकालय में जा कर पढ़ा करते थे. उनकी शिक्षा और ज्ञान की तृष्णा ने उन्हें अधिकाधिक ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रेरित किया. यहीं विश्वविख्यात दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, शिक्षावादी और उनके प्राध्यापक जान डेवी के संपर्क में आने से उन्होंने समाज और लोकतंत्र को बेहतर बनाने में शिक्षा की भूमिका को समझा. उनकी थीसिस (निबंध) "प्राचीन भारतीय वाणिज्य" (Ancient Indian Commerce) के लिए उन्हें कला में स्नातकोतर (MA) की उपाधि से नवाज़ा गया. उनके पेपर "भारत में जातियां" (Castes in India) को भारतीय बर्बर सामाजिक संरचना का पहला वैज्ञानिक विश्लेष्ण माना जाता है. उनकी थीसिस "ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त विकास" (The evolution of provincial finance in British India) के लिए उन्हें डाक्टरेट की उपाधि से नवाज़ा गया जिसने उनके लिए लंदन स्कूल अफ इकनामिक्स के द्वार खोल दिए और फिर विधि शासत्र (Law) के. परन्तु उनकी छात्रवृति का समय ख़त्म हो गया और उसे बढाने के लिए वे बरोड़ा के राजा श्याजी महाराज से मिलाने भारत वापिस आ गए.

अमरीका से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले अम्बेडकर को अस्पर्श्ता के कारण बरोड़ा में किसी ने ठहरने की जगह भी नहीं दी, उन्हें होटलों से भी भगा दिया जाता और पारसी अतिथी गृह में भी जगह नहीं दी गयी.

बोम्बे में वह दो वर्षों तक स्य्देंहम कॉलेज में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्राध्यापक रहे. जल्द ही उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए प्रिंसे ओफ्रेम छात्रवृति मिल गयी और वह लंदन में अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने चले गए.

लंदन में अम्बेडकर अपने ज्ञान की तृष्णा को बुझाने के लिए और अधिक मेहनत से पढ़ने लगे और अपने विषयों के साथ - साथ और विषयों की भी पढाई करने लगे. यहाँ ब्रिटिश म्यूजियम का पुस्तकालय उनकी मनपसन्द जगह थी जहां उन्होंने अपनी ज्ञान की तृष्णा शांत की. अपनी छात्रवृति से मिलने वाले आठ पोंड बचा कर, भूखे रह कर, वाहन का इस्तेमाल किये बिना पैदल चल कर, और कम कपड़ों में निर्वाह कर के, अम्बेडकर ज्यादा से ज्यादा पुस्तकें खरीदते और पढ़ते थे. यहाँ उन्होंने अपनी दो और थीसिस - "ब्रिटिश भारत के प्रांतों में उपनिवेशिक वित्त" (Imperial finance in the provinces of BritIsh India by Ambedkar) और "रूपये की समस्या: इसका मूल और इसका समाधान" (The Problem of the Rupee: Its Origin and its Solution) को भी पूरा किया. एक वर्ष का समय उन्होंने अर्थशास्त्र पढ़ने के लिए जर्मनी के बून विश्वविधालय में बिताया. अम्बेडकर की कुशाग्र बुधि और ज्ञान एवं शिक्षा को देख कर लन्दन के कानून स्कूल बार ने उन्हें आमंत्रित किया, जो कि भारत में किसी के लिए एक अपूर्व उपलब्धि थी .
तो इस प्रकार
अम्बेडकर न सिर्फ भारत वरन समस्त विश्व के विद्यार्थियों के लिए एक प्रेरणा बने.

निखिल सबलानिया



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