पिछले कई दिनों से जातिगत आधार पर जनगणना को ले कर मेरे मन में कई विचार उत्पन्न हुए, जिन्हें ले कर मैंने कई लोगों से सीधे या लीखित तौर पर विचार विमर्श किया. मेरे मन में भी कई संक्षय, कई डर रहे. सबसे बड़ा संक्षय तो यही रहा कि कहीं इससे मेरा देश भारत बिखर न जाए. कई संक्षय यह भी उभर कर आए कि कहीं यह अंग्रेजी सरकार द्वारा १९३२ में जातिगत आधार पर जनगणना करा कर देश को तोड़ने कि कोई चाल तो नहीं थी जिसका कि आज के राजनैतिक दल कहीं फायदा तो नहीं उठा रहे. परन्तु जब कई लोगों का यह संक्षय मेरे सामने आया कि इससे लोग अपनी जात बदल कर सरकारी लाभ उठाएँगे तो मेरे मन के विचारों में यह विचार कौंधा कि यदि कई लोग आरक्षण के लिए अपनी जात बदल कर दलित हो जाएँगे तो विचारनीय बात यह है की इसकी आवश्यकता उन्हें क्यों पड़ रही है. और मेरे मन ने यह कहा कि यदि लोग अपनी जाती बदल कर दलित होते हैं तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि भारतीय सरकारें तरेसठ वर्षों में न सिर्फ पिछड़ों बल्कि अगड़ों को भी एक सुरक्षित वर्तमान और सुन्दर भविष्य देने में नाकामयाब रही है. बल्कि सही कहें तो सरकारी प्रणाली ने जहाँ एक बड़े भारतीय समाज का शोषण करने वाले चंद पूंजीपतियों के हाथों देश को बेच दिया है, वहीँ अगड़ों को भी पिछड़ा बना कर छोड़ दिया है.
दूसरी बात यह है कि क्या भारत देश के एक बड़े जन समुदाय को गरीब और शोषित रख कर सिर्फ राष्ट्रीय एकता के भाव का दुर्प्रचार कर, एक बड़े भारतीय जन समुदाय के उत्थान एवं विकास को नज़रअंदाज करना सही होगा? यदि कोई अपनी जाती बदल कर दलित बन कर अपना वर्तमान और भविष्य सुधारना चाहता है तो इससे भारत टूटेगा नहीं वरन देश के संसाधनों, पूंजी, व्यापार, उधोगों, राजनीती, विचारों अदि में अत्याधिक लोगों की भागीदारी बढ़ेगी न कि सिर्फ चंद पूंजीपतियों का अधिकार जमा रहेगा. और इससे देश में आर्थिक मज़बूती और सामाजिक एकता बढ़ेगी जिससे कि देश मज़बूत होगा न की बिखरेगा या कमज़ोर पडेगा. सौ में से नब्बे को पिछड़ा रख कर देश का विकास संभव नहीं और न ही इससे राष्ट्रीय एकता बढ़ेगी, बल्कि देश हर आधार पर कमज़ोर पड़ेगा.
आज मुझे लग रहा है कि डा. भीमराव रामजी आंबेडकर जी ने देश के आर्थिक और सामाजिक विकास और राष्ट्रीय एकता में सबसे महत्वपूर्ण और दूरदर्शी योगदान दिया है. मेरा उनको नमः प्रणाम है.
निखिल सबलानिया
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